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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by Shivendra on Mon, 10/04/2021 - 15:50
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तालाब या पोखर द्वारा जलसंचय 
 अब हम 'आधुनिक ' हो चले हैं,शहरों की बात छोड़िए गाँवों में भी भूमॉफियाओं द्वारा उन गड्ढों और बावड़ियों को कब्जा करके उसको मिट्टी से पाटकर उस पर 'कथित मॉडर्न पब्लिक स्कूल 'या 'अपनी हवेली 'खड़ी कर लिए हैं,गाँवों में भी पम्पिंग सेट लगाकर उसके पानी को आर.ओ. से शुद्ध करके या बोतलबंद पानी खरीद कर लोग अब पानी पीने को बाध्य हैं,क्योंकि अधिकतर तालतलैयों,गड्ढों और पोखरों के अस्तित्व को मिटा देने से गाँवों में भी पानी पहले की तरह साल भर इकट्ठा नहीं रहता,जिससे जल की धरती में जाने की दर बहुत कम होती जा रही है,गाँवों,कस्बों में भी भूगर्भीय जल की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है,फलस्वरूप गाँवों,कस्बों के कुँए और हैंडपंप भी सूखने लग रहे हैं।
Submitted by Shivendra on Thu, 09/30/2021 - 12:51
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भूजल का सिंचाई में उपयोग
ताजा प्रकाशित शोध अध्ययनों के अनुसार देश के अधिकाँश हिस्सों में भूमिगत जल फ्लोराइड रसायन से दूषित है l इस फ्लोराइडयुक्त जल को लम्बी अवधि तक सेवन अथवा पिने पर मनुष्यों व पालतू पशुओं में विकलांगता के अलावा कई तरह की ठीक नहीं होने वाली शारीरिक विकृतियाँ एक के बाद एक पनपने लगती है l इन विकृतियों को वैज्ञानिक भाषा में फ्लोरोसिस कहतें है l लेकिन इस फ्लोराइडयुक्त भूजल से सिंचाई करने पर खेत की मिट्टी भी फ्लोराइड से दूषित हो जाती है जिसके कारण इसमें उगी विभिन्न प्रकार की फसलों को अत्याधिक नुकसान होता है l फ्लोराइड के विषैलेपन के असर से फसलों की पतियाँ बांकी-टेड़ी हो कर पिली पड़ जाती है जो कमजोर पड़ कर एक-एक करके तने से गिरने लगती है l इसके विषैलेपन के कारण  फसलों के तने भी कमजोर पड़ कर बांके-टेड़े हो जातें है अथवा निचे की ओर झुक कर जमींन पर गिर जातें है l खेतों में ऊगी फसलों का ऐसा दृश्य आसानी से देखा व पहचाना जा सकता है l क्योंकि यह दृश्य पुरे खेत में देखने को मिलता है l
Submitted by Shivendra on Wed, 09/29/2021 - 15:08
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नर्मदा नदी में नही बन सकते बाँध 
वार्षिक जल आंकङे अनुसार 2004- 2005 और 2014- 2015 की तुलना में 37 प्रतिशत नर्मदा नदी के प्रवाह में कमी आयी है।1975 के गणना अनुसार नर्मदा नदी में बहने वाली पानी की उपलब्धता 28 मिलियन एकङ फीट  (एमएएफ) था।नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने 1980 - 81 से प्रतिवर्ष नर्मदा कछार में उपलब्ध जल की मात्रा का जो  रिकार्ड किया गया उससे यह  पता चलता है कि नर्मदा कछार में उपलब्ध जल की मात्रा घटती- बढती रहती है। वर्ष 2010 -2011 में नर्मदा कछार में 22.11 एमएएफ जल उपलब्ध था। हिंदुस्तान टाइम्स के अप्रेल 2018  रिपोर्ट अनुसार 2017 में नर्मदा नदी की जल उपलब्धता 14.66 एमएएफ पाई गई।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
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चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
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यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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तालाब या पोखर द्वारा जलसंचय बनाम आज की कथित आधुनिकता

Submitted by Shivendra on Mon, 10/04/2021 - 15:50
तालाब या पोखर द्वारा जलसंचय 
 अब हम 'आधुनिक ' हो चले हैं,शहरों की बात छोड़िए गाँवों में भी भूमॉफियाओं द्वारा उन गड्ढों और बावड़ियों को कब्जा करके उसको मिट्टी से पाटकर उस पर 'कथित मॉडर्न पब्लिक स्कूल 'या 'अपनी हवेली 'खड़ी कर लिए हैं,गाँवों में भी पम्पिंग सेट लगाकर उसके पानी को आर.ओ. से शुद्ध करके या बोतलबंद पानी खरीद कर लोग अब पानी पीने को बाध्य हैं,क्योंकि अधिकतर तालतलैयों,गड्ढों और पोखरों के अस्तित्व को मिटा देने से गाँवों में भी पानी पहले की तरह साल भर इकट्ठा नहीं रहता,जिससे जल की धरती में जाने की दर बहुत कम होती जा रही है,गाँवों,कस्बों में भी भूगर्भीय जल की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है,फलस्वरूप गाँवों,कस्बों के कुँए और हैंडपंप भी सूखने लग रहे हैं।

भूजल का सिंचाई में अत्याधिक उपयोग, फसलों के लिए नुकसानदायक

Submitted by Shivendra on Thu, 09/30/2021 - 12:51
भूजल का सिंचाई में उपयोग
ताजा प्रकाशित शोध अध्ययनों के अनुसार देश के अधिकाँश हिस्सों में भूमिगत जल फ्लोराइड रसायन से दूषित है l इस फ्लोराइडयुक्त जल को लम्बी अवधि तक सेवन अथवा पिने पर मनुष्यों व पालतू पशुओं में विकलांगता के अलावा कई तरह की ठीक नहीं होने वाली शारीरिक विकृतियाँ एक के बाद एक पनपने लगती है l इन विकृतियों को वैज्ञानिक भाषा में फ्लोरोसिस कहतें है l लेकिन इस फ्लोराइडयुक्त भूजल से सिंचाई करने पर खेत की मिट्टी भी फ्लोराइड से दूषित हो जाती है जिसके कारण इसमें उगी विभिन्न प्रकार की फसलों को अत्याधिक नुकसान होता है l फ्लोराइड के विषैलेपन के असर से फसलों की पतियाँ बांकी-टेड़ी हो कर पिली पड़ जाती है जो कमजोर पड़ कर एक-एक करके तने से गिरने लगती है l इसके विषैलेपन के कारण  फसलों के तने भी कमजोर पड़ कर बांके-टेड़े हो जातें है अथवा निचे की ओर झुक कर जमींन पर गिर जातें है l खेतों में ऊगी फसलों का ऐसा दृश्य आसानी से देखा व पहचाना जा सकता है l क्योंकि यह दृश्य पुरे खेत में देखने को मिलता है l

नर्मदा नदी में नही बन सकते बाँध 

Submitted by Shivendra on Wed, 09/29/2021 - 15:08
नर्मदा नदी में नही बन सकते बाँध 
वार्षिक जल आंकङे अनुसार 2004- 2005 और 2014- 2015 की तुलना में 37 प्रतिशत नर्मदा नदी के प्रवाह में कमी आयी है।1975 के गणना अनुसार नर्मदा नदी में बहने वाली पानी की उपलब्धता 28 मिलियन एकङ फीट  (एमएएफ) था।नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने 1980 - 81 से प्रतिवर्ष नर्मदा कछार में उपलब्ध जल की मात्रा का जो  रिकार्ड किया गया उससे यह  पता चलता है कि नर्मदा कछार में उपलब्ध जल की मात्रा घटती- बढती रहती है। वर्ष 2010 -2011 में नर्मदा कछार में 22.11 एमएएफ जल उपलब्ध था। हिंदुस्तान टाइम्स के अप्रेल 2018  रिपोर्ट अनुसार 2017 में नर्मदा नदी की जल उपलब्धता 14.66 एमएएफ पाई गई।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
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Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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