तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

सिंधु नदी बेसिन‘सिंधु के मैदानों ने मनुष्य को वो परिस्थितियाँ सौंपी जिससे मनुष्य दुनिया का सबसे विशाल संलग्न सिंचाई नेटवर्क बना सका। कुदरत ने पृथ्वी पर कहीं भी पानी की ऐसी भारी-भरकम मात्रा नहीं दी है जिसे बगैर जलाशय में इकट्ठा किये केवल गुरुत्वाकर्षण के जरिए उपयोग में लाया जा सके।’ -एलॉयस आर्थर मिशेल ने अपनी पुस्तक ‘द इंडस रिवर्स: ए स्टडी ऑफ इफेक्ट ऑफ पार्टिशन में यही लिखा है। इस पुस्तक से उन परिस्थितियों की जानकारी मिलती है जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु और सिंधु घाटी की नदियों के जल के बँटवारे के लिये समझौता की जरूरत पड़ी।
दरअसल, भारत-विभाजन के वक्त जब सिंधु घाटी की नदियों पर बने अनेक सैलाबी नहरों में जलप्रवाह बन्द हो गया और नदी, नहर तथा सिंचित क्षेत्र अलग-अलग देशों में चले गए तब विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह समझौता हो सका। 1948 से 1960 के बीच कई दौर में वार्ताएँ हुईं, दस्तावेजों और सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ।
सर बडियाड़ गाँव में बहता धारायूँ तो उत्तराखण्ड में जब भी पानी की बात आती है तो उसके साथ देवी-देवता या नाग देवता की कहानी का होना आवश्यक होता है। ऐसा कोई धारा, नौला, बावड़ी या ताल-तलैया नहीं है जिसके साथ उत्तराखण्ड में किसी देवता का प्रसंग न जुड़ा हो। यही वजह है कि जहाँ-जहाँ पर लोग देवताओं के नाम से जल की महत्ता को समझ रहे हैं वहाँ-वहाँ पानी का संरक्षण हो रहा है।
यहाँ हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी की यमुनाघाटी स्थित ‘सरबडियाड़’ गाँव की जहाँ आज भी पत्थरों से नक्कासी किये हुए गोमुखनुमा प्राकृतिक जलस्रोत का नजारा देखते ही बनता है। यहाँ के लोग कितने समृद्धशाली होंगे, जहाँ बरबस ही सात धारों का पानी बहता ही रहता है। स्थानीय लोग बोल-चाल में इन धारों को ‘सतनवा’ भी कहते हैं। यानि सात नौले।
सिंधु नदी बेसिन‘सिंधु के मैदानों ने मनुष्य को वो परिस्थितियाँ सौंपी जिससे मनुष्य दुनिया का सबसे विशाल संलग्न सिंचाई नेटवर्क बना सका। कुदरत ने पृथ्वी पर कहीं भी पानी की ऐसी भारी-भरकम मात्रा नहीं दी है जिसे बगैर जलाशय में इकट्ठा किये केवल गुरुत्वाकर्षण के जरिए उपयोग में लाया जा सके।’ -एलॉयस आर्थर मिशेल ने अपनी पुस्तक ‘द इंडस रिवर्स: ए स्टडी ऑफ इफेक्ट ऑफ पार्टिशन में यही लिखा है। इस पुस्तक से उन परिस्थितियों की जानकारी मिलती है जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु और सिंधु घाटी की नदियों के जल के बँटवारे के लिये समझौता की जरूरत पड़ी।
दरअसल, भारत-विभाजन के वक्त जब सिंधु घाटी की नदियों पर बने अनेक सैलाबी नहरों में जलप्रवाह बन्द हो गया और नदी, नहर तथा सिंचित क्षेत्र अलग-अलग देशों में चले गए तब विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह समझौता हो सका। 1948 से 1960 के बीच कई दौर में वार्ताएँ हुईं, दस्तावेजों और सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ।
सर बडियाड़ गाँव में बहता धारायूँ तो उत्तराखण्ड में जब भी पानी की बात आती है तो उसके साथ देवी-देवता या नाग देवता की कहानी का होना आवश्यक होता है। ऐसा कोई धारा, नौला, बावड़ी या ताल-तलैया नहीं है जिसके साथ उत्तराखण्ड में किसी देवता का प्रसंग न जुड़ा हो। यही वजह है कि जहाँ-जहाँ पर लोग देवताओं के नाम से जल की महत्ता को समझ रहे हैं वहाँ-वहाँ पानी का संरक्षण हो रहा है।
यहाँ हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी की यमुनाघाटी स्थित ‘सरबडियाड़’ गाँव की जहाँ आज भी पत्थरों से नक्कासी किये हुए गोमुखनुमा प्राकृतिक जलस्रोत का नजारा देखते ही बनता है। यहाँ के लोग कितने समृद्धशाली होंगे, जहाँ बरबस ही सात धारों का पानी बहता ही रहता है। स्थानीय लोग बोल-चाल में इन धारों को ‘सतनवा’ भी कहते हैं। यानि सात नौले।
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