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तेज गर्मी ने पहले ही दस्तक दे दी है और पानी की भारी किल्लत की संभावना अभी से सामने मुंह बाए खड़ी है। लेकिन पिछले दिनों की चुनावी सरगर्मी में इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया। वैसे भी किसी भी बड़ी या छोटी राजनीतिक पार्टी ने पानी को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया था। सरकारी या निजी स्तर पर भी पानी की बचत या किसी व्यापक जलसंरक्षण अभियान को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई दे रही है।
यों पानी की किल्लत अब एक वैश्विक समस्या बन चुकी है। इसलिए पूरे विश्व में जलसंरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से सन् 1993 में ही संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा ने 22 मार्च को विश्व जल दिवस घोषित किया था।
ग्रामीण इलाकों में पानी की गुणवत्ता खराब करने या प्रदूषण फैलाने में खेती में लगने वाले हानिकारक रसायनों का योगदान है। ये रसायन पानी में घुलकर जमीन के नीचे स्थित एक्वीफरों में या सतही जल भंडरों में मिल जाते हैं। रासायनिक फर्टीलाइजरों, इन्सेक्टिसाइड्स और पेस्टीसाइड्स इत्यादि का सर्वाधिक इस्तेमाल सिंचित क्षेत्रों में ही होता है; इसलिए उन इलाकों की फसलों में इन हानिकारक रसायनों की उपस्थिति दर्ज होने लगी हैं यह बदलाव सेहत के लिए गंभीर खतरा बन रहा है।
पानी की गुणवत्ता और जल प्रदूषण का सरोकार रसायनशास्त्री या पर्यावरणविद सहित समाज के सभी संबंधित वर्गों के लिए समान रूप से उपयोगी है। हाल के सालों में तेजी से हो रहे बदलावों के कारण पानी की गुणवत्ता और जल प्रदूषण की समझ का प्रश्न, उसकी आपूर्ति से अधिक महत्वपूर्ण बनता जा रहा है। इसीलिए सभी देश प्रदूषण के परिप्रेक्ष्य में पानी की गुणवत्ता के मानक तय करते हैं, उन पर विद्वानों से बहस कराते हैं और लगातार अनुसंधान कर उन्हें परिमार्जित करते हैं।मानकों में अंतर होने के बावजूद, यह प्रक्रिया भारत सहित सारी दुनिया में चलती है। भारत सरकार ने भी पेयजल, खेती, उद्योगों में काम आने वाले पानी की गुणवत्ता के मानक निर्धारित किए हैं। इन मानकों का पालन कराना और सही मानकों वाला पानी उपलब्ध कराना, आज के युग की सबसे बड़ी चुनौती और दायित्व है।
आजादी मिलने के बाद भारत का संविधान लिखा गया। सन 1987 में देश की पहली राष्ट्रीय जलनीति लागू हुई। पर संविधान एवं राष्ट्रीय जलनीति में भारत की पुरानी परंपराओं, प्रणालियों और जल-संस्कृति या पानी के बंटवारे की समाज द्वारा संचालित पद्धतियों और प्रणालियों की झलक नहीं
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जो पानी का मोल न समझे, सबसे बड़ा अनाड़ी है
तेज गर्मी ने पहले ही दस्तक दे दी है और पानी की भारी किल्लत की संभावना अभी से सामने मुंह बाए खड़ी है। लेकिन पिछले दिनों की चुनावी सरगर्मी में इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया। वैसे भी किसी भी बड़ी या छोटी राजनीतिक पार्टी ने पानी को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया था। सरकारी या निजी स्तर पर भी पानी की बचत या किसी व्यापक जलसंरक्षण अभियान को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई दे रही है।
यों पानी की किल्लत अब एक वैश्विक समस्या बन चुकी है। इसलिए पूरे विश्व में जलसंरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से सन् 1993 में ही संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा ने 22 मार्च को विश्व जल दिवस घोषित किया था।
जल प्रदूषण
ग्रामीण इलाकों में पानी की गुणवत्ता खराब करने या प्रदूषण फैलाने में खेती में लगने वाले हानिकारक रसायनों का योगदान है। ये रसायन पानी में घुलकर जमीन के नीचे स्थित एक्वीफरों में या सतही जल भंडरों में मिल जाते हैं। रासायनिक फर्टीलाइजरों, इन्सेक्टिसाइड्स और पेस्टीसाइड्स इत्यादि का सर्वाधिक इस्तेमाल सिंचित क्षेत्रों में ही होता है; इसलिए उन इलाकों की फसलों में इन हानिकारक रसायनों की उपस्थिति दर्ज होने लगी हैं यह बदलाव सेहत के लिए गंभीर खतरा बन रहा है।
पानी की गुणवत्ता और जल प्रदूषण का सरोकार रसायनशास्त्री या पर्यावरणविद सहित समाज के सभी संबंधित वर्गों के लिए समान रूप से उपयोगी है। हाल के सालों में तेजी से हो रहे बदलावों के कारण पानी की गुणवत्ता और जल प्रदूषण की समझ का प्रश्न, उसकी आपूर्ति से अधिक महत्वपूर्ण बनता जा रहा है। इसीलिए सभी देश प्रदूषण के परिप्रेक्ष्य में पानी की गुणवत्ता के मानक तय करते हैं, उन पर विद्वानों से बहस कराते हैं और लगातार अनुसंधान कर उन्हें परिमार्जित करते हैं।मानकों में अंतर होने के बावजूद, यह प्रक्रिया भारत सहित सारी दुनिया में चलती है। भारत सरकार ने भी पेयजल, खेती, उद्योगों में काम आने वाले पानी की गुणवत्ता के मानक निर्धारित किए हैं। इन मानकों का पालन कराना और सही मानकों वाला पानी उपलब्ध कराना, आज के युग की सबसे बड़ी चुनौती और दायित्व है।
मेरा पानी तेरा पानी
आजादी मिलने के बाद भारत का संविधान लिखा गया। सन 1987 में देश की पहली राष्ट्रीय जलनीति लागू हुई। पर संविधान एवं राष्ट्रीय जलनीति में भारत की पुरानी परंपराओं, प्रणालियों और जल-संस्कृति या पानी के बंटवारे की समाज द्वारा संचालित पद्धतियों और प्रणालियों की झलक नहीं
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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